संजीवनी : चाहत थी आखिरी सांस तक जीने की

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चाहत थी आखरी सांस तक जीने
शर्त तो थी,लम्हा लम्हा जीने की|
आबरू बचा लूं तूफान से,
मेरे उस टूटे हुए सकीने की,
सकिने – शांती,
दिल को तस्कीन सी मिली जाना,
बात जब भी तेरी किसीने की|
तास्किन-तसल्ली,
होश बन जाए न आजाब कहीं ,
अब आरजू है शराब पीने की|
आजाब- पीड़ा,दर्द,
मुझको संजीव कभी गम नहीं इसका,
कीमतें बेहद कम मिली पसीने की |
संजीव ठाकुर,15,रिक्रियेसन रोड, चौबे कोलोनी, रायपुर,छ.ग,.9009415415 

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