“महर्षि दयानंद जी का त्रिकाल दर्शी मन्तव्य” पर गोष्ठी सम्पन्न

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गाजियाबाद। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद् के तत्वावधान में “महर्षि दयानन्द जी का त्रिकाल दर्शी मन्तव्य” विषय पर ऑनलाईन गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह कोरोना काल से 581 वां वेबीनार था।

वैदिक विद्वान् आचार्य हरिओम शास्त्री ने कहा कि विश्व में सबसे अधिक युद्ध ईश्वर के नाम पर ही हुए हैं।महर्षि दयानन्द सरस्वती ने जीव,ईश्वर और प्रकृति त्रैतवाद के सिद्धान्त को स्वीकार किया है। उन्होनें कहा कि महर्षि दयानन्द जी एक ऋषि थे अतः उनकी शिक्षाएं तीनों कालों में उपयोगी और महत्वपूर्ण हैं। यदि ऋषि के बनाए हुए आर्य समाज के नियमों को ही हम अपने जीवन में अपना लें तो हम मानवता का विस्तार और शुद्धिकरण कर सकते हैं। यदि लोग ईश्वर के सच्चे स्वरूप को जान लेते तो इस प्रकार के जनसंहार से बच सकते थे। इसीलिए उन्होंने आर्य समाज के दस नियमों में पहले दो नियम केवल ईश्वर के स्वरूप को समझाया है।साथ ही अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश का प्रथम समुल्लास ईश्वर विषयक ही लिखा है

।ऋषिवर दयानन्द ने अपने दार्शनिक सिद्धान्तों में त्रैतवाद को बहुत ही महत्वपूर्ण ढंग से वर्णन किया है।वे संसार को बनाने वाले निमित्त कारण ईश्वर का,उपादान कारण प्रकृति (सामग्री) का और जिसके लिए बनाया गया है, उस सामान्य कारण जीवात्मा को प्रमुख मानते हैं। वे अपने शिष्यों आर्यजनों को संसार का उपकार शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक रूप में करने की प्रमुख रूप में प्रेरणा देते हैं।आगे अन्त में दसवें नियम में सामाजिक सर्वहितकारी नियम पालने में सभी को परतन्त्र रहने और प्रत्येक हितकारी व्यक्तिगत नियम पालने में सबको स्वतन्त्र रहने की शिक्षा देते हैं।यदि हम इन नियमों को मनसा वाचा कर्मणा पालन करते हैं तो ही ऋषिवर दयानन्द जी के शिष्य कहलाने का अधिकार रखते हैं अन्यथा हम उनके प्रति न्याय नहीं करते हैं।

मुख्य अतिथि आर्य नेता डॉ. गजराज सिंह आर्य व अध्यक्ष डालेश त्यागी ने भी महर्षि दयानन्द जी के सिद्धांतो को सार्वकालिक बताया।

केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कुशल संचालन किया व राष्ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

गायिका कुसुम भण्डारी, आदर्श सहगल, कौशल्या अरोड़ा, सरला बजाज, जनक अरोड़ा, रविन्द्र गुप्ता, कमला हंस, सुनीता अरोड़ा, रजनी गर्ग, रजनी चुग, बिंदू मदान आदि ने मधुर भजन प्रस्तुत किए।

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