चिंता का कारक बनता प्रदूषण

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प्रदूषित शहरों की विश्व सूची में भारतीय शहर आज सबसे ऊपर आते हैं, तो यह कोई संयोग नहीं है। यह इस देश का अपना चयन है। जाहिर है, ऐसा भारतवासियों की सेहत और यहां तक कि उनकी जान के लिए खतरा बढ़ाने की कीमत पर किया गया है।
खुद को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति एक दिमागी बीमारी है। कोई व्यक्ति ऐसी बीमारी से पीड़ित हो जाए, तो उसे मनोचिकित्सक के पास ले जाना पड़ता है। लेकिन अगर किसी समाज पर ऐसी सामूहिक प्रवृत्ति हावी हो जाए, तो उसका क्या इलाज है, यह समझना कठिन हो जाता है।
यह मसला इसलिए अहम है, क्योंकि फिलहाल हमें भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से में ऐसी प्रवृत्ति बढऩे के संकेत देखने को मिल रहे हैं। अगर ऐसा नहीं होता, तो इस समय राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों के लोगों को जहरीली हवा में सांस नहीं लेना पड़ता। प्रदूषित हवा झेल रहे इस क्षेत्र के लोगों पर प्रकृति ने दिवाली से ठीक पहले रहम दिखाई।
अचानक हुई बारिश ने वातावरण को स्वच्छ कर दिया। अगर समाज का विवेक कायम होता, तो लोगों की स्वाभाविक प्राथमिकता इस वातावरण की रक्षा करनी होती। लेकिन दिवाली को जिस सुनियोजित ढंग से वातावरण को फिर से जहरीला बनाया गया, अब वह बहुचर्चित कहानी है।लेकिन बात सिर्फ यहीं तक नहीं है। एक रिपोर्ट के मुताबिक इस महीने के आरंभ में केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने राज्यों के बिजली मंत्रियों की एक बैठक आयोजित की। उसमें मुख्य रूप से नए कोयला संचालित बिजली संयंत्रों की स्थापना पर विचार किया गया।
उसी रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा दशक भर बाद देखने को मिला है। जिस समय दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन की गति धीमी करने के लिए जीवाश्म ऊर्जा का उपयोग घटाने और अक्षय ऊर्जा पर जोर देने का रुझान है, स्पष्टतरू भारत उसके उलटी दिशा में जा रहा है। हाल के वर्षों में भारत सरकार ने जिस बेपरवाह रुख के साथ पर्यावरण संबंधी नियम-कानूनों में ढील दी है और उन पर अमल की निगरानी व्यवस्था को कमजोर किया है, उसका उल्लेख भी इस सिलसिले में किया जा सकता है।
दरअसल, प्रदूषित शहरों की विश्व सूची में भारतीय शहर आज सबसे ऊपर आते हैं, तो यह कोई संयोग नहीं है। यह इस देश का अपना चयन है। जाहिर है, ऐसा भारतवासियों की सेहत- और यहां तक कि उनकी जान के लिए खतरा बढ़ाने की कीमत पर किया गया है।

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